आजादी के 70 साल बाद भी बाल मजदूर और भीख मांगता बचपन

सवेरे सवेरे यारों से मिलने बन ठन के निकले हम सवेरे सवेरे यारों से मिलने घर से दूर चलें हम रोके से न रुके हम, मर्जी से चलें हम बादल सा गरजें हम, सावन सा बरसे हम सूरज सा चमकें हम, स्कूल चलें हम। जी हाँ ये वही गाना है जिसे हम बचपन दूरदर्शन पर सुना करते थे, 2001 की अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान योजना लॉन्च की थी। उसी अभियान के तहत यह खूबसूरत गाना पूरे देश में चलाया गया। इस गाने में बच्चे सज धज के स्कूल की ओर भागते हैं, प्राइमरी स्कूलों की दीवालों पर सर्वशिक्षा अभियान, सब पढ़ें सब बढ़ें का लोगो बनाया गया। इस लोगो में एक बालक और बालिका दिखते थे, पेंसिल पर बैठे हुए। वास्तव में काफी जारूकता भी लोगों में आई, साक्षरता भी बढ़ी किन्तुु उस अभियान को भी देखते-देखते 18 वर्ष बीत चुके हैं। यह अभियान आज भी निरंतर चल रहा है किन्तु भारत के बचपन की एक दूसरी तस्वीर भी है। जी हाँ आज भी भारत में बचपन की एक ऐसी भी तस्वीर है जहां बचपना पढ़ाई नहीं करता, जहां बचपना खेलता भी नहीं, जहां बच्चे का कोई भी पढ़ने-लिखने वाला दोस्त नहीं। जी हां देश में एक एसा बचपन...