आखिर rss और bjp को क्यों हो गया आरक्षण से प्रेम

अभी हाल में ही दिल्ली में संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय भारत के भविष्य कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश के कई प्रमुख विषयों पर अपना पक्ष रखा जिसमें आरक्षण जैसे प्रमुख मुद्दे पर उन्होंने कहा कि संविधान सम्मत सभी आरक्षणों को संघ का पूरा समर्थन है।आरक्षण कब तक चलेगा इसका निर्णय जिनके लिए आरक्षण दिया गया है वही करेंगे। उनको जब लगेगा कि अब आवश्यकता नहीं है इसकी तब वो देखेंगे। अब सवाल ये है कि आरक्षण का प्रावधान जिस उद्देश्य से लाया गया था क्या उसका सही परिणाम मिल रहा है ,क्या जो फायदा पा चुके हैं उनको दुबारा फायदा मिलना चाहिए ,क्या जिनका सामाजिक एवं आर्थिक स्तर सुधर गया है उनको भी आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों के पास सारी सुविधाओं के होने के बावजूद ये अपने से गरीब ,पिछड़ों का हक ले रहे हैं और राजनीति का स्तर ये हो रहा कि आरक्षण धीरे धीरे घटाने के बजाय बढ़ाया जा रहा तो इसका खामियाजा वो भुगत रहे हैं जो अत्यंत गरीब हैं जिनको पढ़ने का भी मौका नहीं मिल रहा तो वो आगे आरक्षण का फायदा कैसे उठा पाएंगे और उन गरीबों में कई सवर्ण भी हैं जिनके पास न तो पहले जैसी जमीन रही न ही वो सस्ता जवाना रहा जिसमें आसानी से जीवन बिताया जा सकता था ।तो ये सवर्ण भी उन गरीब किसानों,कर्मचारियों के बच्चे हैं जो अपने परिवार का पेट पालने में असमर्थ हैं और आए दिन फांसी लगा रहे हैं और सामाजिक स्तर को देखें तो जिस सामाजिक अव्यवस्था के कारण जातिगत आरक्षण लाया गया उसी सामाजिक अव्यवस्था का प्रभाव है कि ये सवर्ण भी कई ऐसे छोटे काम नहीं कर सकते जिनसे कुछ कमाई हो सके ,अगर ये कहीं मजदूरी करें तो बेज्जती ,पंचर बनाएँ तो बेज्जती और उनकी ही जाति के लोग मजाक उड़ाने लगते हैं की फलाना मजदूरी कर रहा ।तो अब पश्न उठता है की क्रीमीलेयर को क्या करना क्योंकि अगर जो एक बार फायदा उठा चुके हैं उनको दोबारा मौका न दिया जाए तो आरक्षण को आसानी से घटाया जा सकता है और गरीबों को और ज्यादा मौका मिलने लगेगा ।तो क्रीमीलेयर और अब अन्य कई जातियां आरक्षण मांग रही है उनका क्या करना है इसके जवाब में भागवत कहते हैं कि इसका विचार करने के लिए संविधान ने पीठ बनाए हैं। फोरम बनाये हैं वह उनका विचार करे और उचित निर्णय दे।सामाजिक कारणों से हजारों वर्षों से लगभग स्थिति है कि हमारे समाज का एक अंग पूर्णतः निर्बल हमने बना दिया है उसको ठीक करना आवश्यक है। हजारों वर्षों की बीमारी को ठीक करने में अगर हमको 100-150 साल नीचे झुककर रहना पड़ता है तो ये कोई महंगा सौदा बिल्कुल नहीं है। अब देश का सबसे बड़ा संगठन जिसने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दिया और परोक्ष रूप से ये सरकार संघ से प्रभावित है ,bjp के ज्यादातर मंत्री ,सांसद,विधायक संघ की शाखा से निकले हैं वह आरक्षण जैसे मुद्दे पर पीछे हटता है तो इससे उसका सत्ता प्रेम झलकता है और परोक्ष रूप से सत्ता सुख उसको भी मिल रहा है ।अब रही बात bjp की तो कहीं न कहीं यह भी सत्य है कि अब जबकि पूरा विपक्ष एक हो रहा तो वह सिर्फ सवर्णों की वोट से सत्ता में रह नहीं सकती ऐसे में उसने भी बाकी के जातियों को लुभाने का प्रयास किया जिसमें प्रमोशन में आरक्षण और sc/act का पक्ष लेना प्रमुख है और इन्हीं राजनैतिक मजबूरियों का शिकार संघ भी है क्योंकि इससे कई बार आरक्षण की समीक्षा करने के पक्ष में संघ बयान दे चुका है और बिहार में हार और वर्तमान राजनैतिक माहौल से प्रभावित होकर वह अब आरक्षण का पक्षधर रहना ही उचित मानता है। और bjp ने तो जाटों को भी आरक्षण देने का समर्थन कर दिया जबकि जाटों का आर्थिक एवं सामाजिक स्तर अन्य सभी से खहीं बेहतर है । अब बात आती है संघ के उस बयान की कि आरक्षण तबतक रहेगा जबतक उन जातियों को इसकी जरूरत है तो यह भी सत्य है की यह जरूरत हमेशा रहेगी क्योंकि जब अमीर से अमीर लोग आरक्षण ले रहे हैं और आगे भी लेना चाहते हैं ,आजादी के 70 साल बाद जाट,पाटीदार,गुर्जर जैसी मजबूत जातियाँ आरक्षण की मांग कर रही हैं तो अन्य जाति आज भी अतिपिछड़े हैं और शायद ही कभी उनकी स्थिति सुधर पाएगी और आरक्षण शायद ही कभी खत्म हो ।इसमें पिस रहा है मध्यम वर्गी,गरीब सवर्ण और अत्यंत गरीब दलित ,आदिवासी समाज जिनके पास न तो जमीन है न ही पढ़ने का पैसा । सवर्ण मेधावी छात्र सफाई कर्मी और होमगार्ड की नौकरी कर रहे हैं क्योंकि सरकारी नौकरी में 50% आरक्षित है और बचे 50% में भी लगभग 25% यही आरक्षित वर्ग घुस रहा बाकी बचे 25% में 20% शहरी या अमीर सवर्ण घराने के बच्चे जा रहे हैं क्योंकि उनको अच्छी शिक्षा व्यवस्था मिल रही है अब मात्र 5% में मध्यम वर्गी,गरीब सवर्ण जा पा रहे हैं जिनके पास विशिष्ट प्रतिभा और मेहनत है। अब प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण लाने की माग की जा रही जबकि वैसे भी प्राइवेट सेक्टर में इंजीनियर,मैनेजमेंट जैसी अच्छी पढ़ाई अमीर ही कर रहा और आरक्षण आ गया तो हेल्परों की भी जगह नहीं बचेगी तो ऐसे में मध्यमवर्गी और गरीब सवर्ण आत्म हत्या करें या भावी दलित का तमगा लेने को तैयार रहें ।
     अंकित मिश्र चंचल

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