प्रयागराज से इलाहाबाद और प्रयागराज तक
भारत का तीर्थस्थल देवभूमि प्रयाग जिसे त्रिवेणी नाम से भी जाना जाता है और ये बताता है कि यहां तीन नदियों का संगम है। वह पुण्यभूमि जहाँ कभी भारद्वाज ऋषि का आश्रम था, अत्रि मुनि और अनुसुइया का निवासस्थल तथा जहाँ अक्षय वट वृक्ष है। यहीं आदिशंकराचार्य से शास्त्रार्थ के बाद कुमारिल भट्ट ने प्रायश्चित किया। यहीं नागवासुकी और तक्षक नागों के मंदिर हैं। यहीं करीब सवा चार सौ साल पहले बना अकबर का किला है और यहीं से अंग्रेजों ने उत्तर भारत पर शासन किया।
अब जब अकबर की बात आती है तो अकबर ने ही इस पुण्यभूमि को इलाहाबाद का नाम दिया और इस नाम देश विदेश में बड़ी पहचान मिली किन्तु आज लगभग 443 वर्षों बाद भी इसको पुराने पहचान प्रयागराज को कोई नहीं भूला ।
समय का चक्र फिर से घूमा और मुगलों,अंग्रेजों,कांग्रेस के बाद एक बार फिर से देश में हिंदुत्ववादी सत्ता आयी और खासकर up में एक सन्यासी को सत्ता की कमान मिली ।
अब यह शहर एक बार फिर विश्वभर में चर्चित हो गया क्योंकि यह पुनः अपने पुराने नाम से जाना जाएगा,इसका नाम फिर से प्रयागराज कर दिया गया है।
ज्यादातर लोगों का मानना है कि शहर को उसका पुराना गौरव प्राप्त हो गया वहीं कुछ तबकों में खासी नाराजगी जिनका मानना है कि नाम परिवर्तन करना जनता को सिर्फ बहकाना है और सरकार पास कुछ काम नहीं तो वह ऐसे ही व्यर्थ के काम कर रही ।ज्यादातर मुस्लिम समाज का मानना है कि यह उनके धर्म के खिलाफ कार्य किया जा रहा और हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा सत्ता का दुरुपयोग हो रहा।इलाहाबाद से लोगों का अपना प्रेम भी है और देश के किसी कोने में वो खुद को इलाहाबादी बता कर गौरान्वित महसूस करते हैं लेकिन परिवर्तन तो शाश्वत सत्य है हर समय में सत्ता ने अपने सुविधानुसार या जनता की मांग पर शहरों का नाम बदला।आजादी के बाद से अबतक अनेक शहरों,स्थानों जैसे बड़ौदा को वडोदरा, त्रिवेन्द्रम को तिरुवनंतपुर, बॉम्बे को मुंबई, मद्रास को चेन्नई, कोचीन को कोच्चि,कलकत्ता को कोलकाता,पौंडिचेरी को पुड्डुचेरी,कॉनपोर को कानपुर,बेलगाम को बेलगावि,इंधूर को इंदौर,पंजीम को पणजी,पूना को पुणे,सिमला को शिमला,बेनारस को वाराणसी,वाल्टेयर को विशाखापत्तनम,तंजौर को तंजावुर , जब्बलपोर को जबलपुर,बैंगलोर को बंगलुरु आदि का नाम बदल दिया गया फिर इलाहाबाद का तो पुराना नाम ही प्रयागराज था ऐसे में इस नाम परिवर्तन को लेकर परेशान होना सायद सही नहीं होगा।
ये बात सत्य है कि अकबर के इलाहाबाद ने बहुत नाम कमाया किन्तु ये भी सत्य है की आज भी विश्वभर में यह शहर कुम्भ मेले,त्रिवेणी तीर्थराज प्रयाग से ही अपना पहचान बनाया है और अब प्रशासनिक रूप से भी यह प्रयागराज हो गया तो हमको और गर्व होना चाहिए ।प्रयागराज और यहाँ की संस्कृति हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत है और भले ही इलाहाबाद को हमने स्वीकारा किन्तु वास्तव में यह गुलामी का परिचायक है ।जब अन्य शहरों का नाम बदल सकता है तो ऐसा शहर जिसकी पहचान ही तीर्थराज,धर्म नगरी,देव भूमि से हो ,जिसकी अपनी एक प्रचीन संस्कृति हो ,जिसका अपना गौरवशाली इतिहास हो उसको पुनः उसका गौरव मिले तो यह हमारे गर्व की बात है ।
अंकित मिश्र "चंचल प्रयाग"
अब जब अकबर की बात आती है तो अकबर ने ही इस पुण्यभूमि को इलाहाबाद का नाम दिया और इस नाम देश विदेश में बड़ी पहचान मिली किन्तु आज लगभग 443 वर्षों बाद भी इसको पुराने पहचान प्रयागराज को कोई नहीं भूला ।
अब यह शहर एक बार फिर विश्वभर में चर्चित हो गया क्योंकि यह पुनः अपने पुराने नाम से जाना जाएगा,इसका नाम फिर से प्रयागराज कर दिया गया है।
ज्यादातर लोगों का मानना है कि शहर को उसका पुराना गौरव प्राप्त हो गया वहीं कुछ तबकों में खासी नाराजगी जिनका मानना है कि नाम परिवर्तन करना जनता को सिर्फ बहकाना है और सरकार पास कुछ काम नहीं तो वह ऐसे ही व्यर्थ के काम कर रही ।ज्यादातर मुस्लिम समाज का मानना है कि यह उनके धर्म के खिलाफ कार्य किया जा रहा और हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा सत्ता का दुरुपयोग हो रहा।इलाहाबाद से लोगों का अपना प्रेम भी है और देश के किसी कोने में वो खुद को इलाहाबादी बता कर गौरान्वित महसूस करते हैं लेकिन परिवर्तन तो शाश्वत सत्य है हर समय में सत्ता ने अपने सुविधानुसार या जनता की मांग पर शहरों का नाम बदला।आजादी के बाद से अबतक अनेक शहरों,स्थानों जैसे बड़ौदा को वडोदरा, त्रिवेन्द्रम को तिरुवनंतपुर, बॉम्बे को मुंबई, मद्रास को चेन्नई, कोचीन को कोच्चि,कलकत्ता को कोलकाता,पौंडिचेरी को पुड्डुचेरी,कॉनपोर को कानपुर,बेलगाम को बेलगावि,इंधूर को इंदौर,पंजीम को पणजी,पूना को पुणे,सिमला को शिमला,बेनारस को वाराणसी,वाल्टेयर को विशाखापत्तनम,तंजौर को तंजावुर , जब्बलपोर को जबलपुर,बैंगलोर को बंगलुरु आदि का नाम बदल दिया गया फिर इलाहाबाद का तो पुराना नाम ही प्रयागराज था ऐसे में इस नाम परिवर्तन को लेकर परेशान होना सायद सही नहीं होगा।
अंकित मिश्र "चंचल प्रयाग"
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