सौंगन्ध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे किंतु तारीख नहीं बताएंगे।
दरअसल तारीख बताएगा कौन ? क्या किसी के सोच लेने से ,चाह लेने से मन्दिर बन जाएगा वो भी जिस तारीख पर चाहेगा ? एक लोकतांत्रिक देश में कोई भी कार्य लोकतांत्रिक तरीके से ही संम्पन हो तो ही वह कार्य सफल माना जाता है और जब तक राम मन्दिर का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में है तो देश का कोई भी संगठन या पार्टी कैसे तारीख बता सकता है। देश का एक एसा भी वर्ग है जो नहीं चाहता कि अयोध्या में कोई राम मंदिर बने और उसका लाभ बीजेपी को मिले भले ही वह हिंदू है। किन्तु न्याय तो न्याय होता है और अगर देश का न्यायालय ही न्याय न देकर तुष्टिकरण की बात सोचने लगे तो यह भी लोकतंत्र का अपमान है और अभी ऐसा ही हुआ।जिस न्यायालय से हिन्दू समाज को अभी तक उम्मीद थी कि कोर्ट 2010 से लंबित राम जन्मभूमि का विवाद हल करेगा, वह कोर्ट 2 मिनट के लिए चलाई जाती है और जज साहब इस मुद्दे को यह कहकर जनवरी तक टाल देते हैं कि राम मन्दिर का मुद्दा उनकी प्राथमिकता में नहीं है। क्या समलैंगिकता,497,सबरीमाला जैसे मुद्दे ही कोर्ट की प्रथमिकता में हैं ?क्या कोर्ट ने भी हिन्दू समाज को अपमानित करने की ठान ली है ? और फिर मंदिर के मामले में तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ कह दिया था कि वह राम जन्मभूमि ही है और उसपर हिंदुओं का अधिकार है । यह निर्णय भी सबूत के आधार पर दिया गया था । लेजर फोटोग्राफी किया गया जिससे यह प्रमाण मिला कि मस्जिद के नीचे कोई मंदिर का ढांचा था जिसके ऊपर मस्जिद बनाया गया था बाद में विवादित पक्षों के सामने खुदवाई भी कराई गयी जिसमें हिन्दू देवता की मूर्तियां भी मिली
जिसके आधार पर कोर्ट ने निर्णय सुनाया। मुस्लिम धर्म के नियमानुसार कोई भी मस्जिद किसी की जगह को जबरन लेकर बनाना अपवित्र माना जाता है और दूसरी बात अयोध्या में मुस्लिम धर्म का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य भी नहीं है जबकि प्रभु श्री राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ सर्व विदित है तो सवाल यह है की राम मंदिर अयोध्या में ना बने तो कहां बने। हालांकि निर्णय देते समय इलाहाबाद हाइकोर्ट भी राम जन्मभूमि के मुद्दे से भटक कर जमीन के विवाद को सुलझाने में निर्णय दिया और उस जमीन को तीन भाग में बांट दिया एक भाग निर्मोही अखाड़ा को दूसरा रामलला जन्मभूमि के लिए और तीसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को। समस्या आती है अगर वह राम जन्म भूमि है तो फिर वह पूरी जमीन हिंदू धर्म की हुई और प्रभु श्री राम का मंदिर वहां पर बनना चाहिए। मुस्लिम पक्ष वैसे भी निर्णय से संतुष्ट न था।इसलिए तीनों विवादित पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनः याचिका दायर किया गया और 8 वर्षों तक इंतजार भी किया गया ।अब ऐसे में यदि न्यायालय कहता है की भगवान राम जन्म विवाद उनकी प्रथमिकता में नहीं है तो यह लोकतंत्र के साथ साथ हिंदुओं का भी घोर अपमान है।इस निर्णय के बाद हिन्दू संगठनों ने कोर्ट से अपेक्षा छोड़ दिया और सरकार को भी आगाह कर दिया की अगर वह कानून या अध्यादेश नहीं ला पाती तो आरएसएस और विहिप के नेतृत्व
में राम मन्दिर के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा और सरकार ,न्यायालय फिर भी कोई निर्णय न दिया तो 1992 में जैसे मस्जिद गिराया था वैसे ही जनता खुद रामलला का भव्य मन्दिर बनाएगी।देखते हैं सरकार संसद में कोई बिल या अध्यादेश ला पाती है या नहीं। अगर नहीं ला पाएगी तो क्या हिन्दू संगठन आंदोलन से राम मन्दिर बना पाते हैं या नहीं? हां यह बात जरूर है कि सरकार कानून नहीं भी बना पाती है तो भी आंदोलन का पीछे से पूरा समर्थन होगा जिसकी विश्व में थोड़ी किरकिरी जरूर हो सकती है लेकिन जनांदोलन का बहाना लेकर मोदी जी वैश्विक मंच पर खुद का बचाव कर सकेंगे।
अंकित मिश्र चंचल
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