निठल्ला युवा व्यस्तता भारी, जाने अनजाने में खुद से ही गद्दारी

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ....जय हनुमान...जय हनुमान...
हनुमान चालीसा जोर जोर से पढ़ा जा रहा था, भजन में मस्त था तभी पिछवाड़े पर एक लात पड़ा और बिस्तर से नीचे जा गिरा भक्त, सपने से जग गया।
अबे कब से अलार्म बज रहा है! नहीं उठना रहता क्यों लगाता है दूसरे की भी नींद खराब करता है!
कब से चिल्ला रहा है तेरा फोन कहकर किसी तरह मूत्रालय गया फिर दोनों घुस गए रजाई में।
रजाई में ही धुँआ-धुँआ किए जा रहे लेकिन नींद है कि खुलने का नाम नहीं ले रही है।
साला आज फिर क्लास छूट गया बुदबुदाते हुए अचानक दिव्य उठा और शौचालय की ओर जोर से भाग गया फिर एक जोर से आवाज आई और भक्त की भी आंख खुल गयी।
10:30 बज चुके थे।
अबे जल्दी करके निकल आज फिर बहुत देर हो गई, 3 क्लास छूट गया!
जा दूध ला चाय बनाता हूँ शौचालय से आवाज आई।
दोनों के नित्य क्रिया होते चाय पीते 11:10 हो चुके थे और अब तो 12 वाली ही एक क्लास मिल सकती थी।
पड़ोस के सहपाठी मिश्रा को फोन किया गया।
भाई मैं गर्म पानी पी रहा हूँ, ठंडी में उतरती नहीं बिना पानी पिए! कहकर मिश्रा भी शौच को चल दिया।
अतः ध्वनि मत से तीनों ने रात जल्दी सोने और कल कॉलेज जाने का निर्णय लिया। फिर अपने-अपने मोबाइल में लग गए।


दोपहर 1:00 बजे फोन बजा, हाँ मिश्रा बोल!
ठीक है मैं दाल लेकर आता हूँ।
दाल पक चुकी थी, दोनों मिश्रा के कमरे पर गए, वहाँ चावल बना था।
दाल फ्राई किया गया, मिश्रा दाल फ्राई बहुत अच्छा करता है कहकर थाली भरके दाल-चावल, अचार कटहल वाला खींचा गया।
यार परीक्षा में क्या लिखेंगे कोई तैयारी नहीं है! कहकर चिंता जताया गया फिर तीनों मोबाइल में लग गए।


चावल-दाल के बाद नींद बहुत प्यारी आती है तो 2 घण्टे की फिर नींद ली गई। आंख खुली तो शाम हो चुका था।
इस तरह मोबाइल चलाते हुए फिर परीक्षा की चिंता जताई गई। तब-तक बगल के 3 दोस्त और आ गए।
गरमागरम बहस हुआ फिर भोजन बनाते खाते रात के 11 बज गए और मोबाइल चलती रही।
अब 12 बज चुके थे और नींद नहीं आ रही थी तो कोई फिल्म देखने का सोचा गया किन्तु सुबह समय पर उठना भी है।
कोई नहीं कल का कल देखा जाएगा पहले आज फ़िल्म देख लिया जाए कहते हुए दोनों लग गए।
दरअसल सीनियर्स ने पहले ही समझा दिया था कि पत्रकारिता कोई पढ़ने की नहीं बल्कि सीखने करने की चीज है।

इस कहानी के कोई पात्र काल्पनिक नहीं हैं और यह सच्ची घटना पर आधारित है।

ये तो थी एक सच्ची कहानी लेकिन ब्लॉग लिखने का उद्देश्य यह था कि आज के समय में यह हर युवा की कहानी बनती जा रही है।
देश का ज्यादातर युवा अपने दिन का अधिकांश समय इंटरनेट पर बिता रहा है जिसकी वजह से उसकी पूरी दिनचर्या बिगड़ गई है। लोग बीमारी से घिरे हैं।


सुबह देर से उठने की वजह से पेट और दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है।
पुस्तकें पढ़ने का समय नहीं है।
सोशल मीडिया के पोस्ट पढ़कर फर्जी ज्ञान प्राप्त हो रहे हैं ।
मित्रों और परिवार से भी दोस्ती कम मोबाइल से ज्यादा हो चुकी है।
इस निठल्लेपन के बावजूद दिन आसानी से कट जा रहा है और युवा खुद को बहुत व्यस्त समझ रहा है।
समझ तो सब रहे हैं किंतु इंटरनेट, मोबाइल अफ़ीम की तरह काम कर रहा है।
        खैर लेखक खुद इस समस्या से ग्रसित है और निदान पाने के लिए प्रयासरत है।
                            अंकित मिश्र चंचल

Comments

  1. Sahi baat hai chanchal, sabji bana lo roti hm bana lete hain aaj

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. लेखक निदान पाने के बाद निदान का उपाय हमसे भी शेयर करें...

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    Replies
    1. पहले तो नीचे के फॉलो वाले ऑप्शन पर क्लिक करें और हमें फ़ॉलो करें उसके बाद हम शोध करके आपको निदान बताते हैं, दरसल इसका निदान बहुत कठिन है😁😁😁

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  4. बिल्कुल सही, युवा आजकल इंटरनेट के जाल में बुरी तरह फंसा है और मैं भी एक युवा।

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