अंतरिम बजट, चुनावी शतरंज, छोटी-छोटी मगर मोटी बातें
लोकसभा चुनाव आ गया है, राजनीति जोड़-तोड़ शुरू हो चुके हैं, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रमुख छोड़ महागठबंधन के अन्य सभी नेताओं ने ममता बनर्जी के नेतृत्वमें मंच भी साझा किया।
केजरीवाल भी पूरे जोश में मोदी पर बरसे और बाद में तो उन्होंने ट्वीट कर मोदी भक्तों को देश से प्यार न करने वाला भी साबित करने का प्रयास किया।
उधर बुआ-भतीजा गठबंधन भी चुनावी बिगुल बजा दिया और अखिलेश ने माया को प्रधानमंत्री का सपना दिखाते हुए मुलायम के सपने चूर चूर कर दिया।
सपा-बसपा से भाव न पाने पर कांग्रेस ने इंदिरास्त्र के रूप में प्रियंका वाड्रा को लांच कर दिया क्योंकि उनकी शक्ल उनकी दादी से मिलती है इसलिए उनको सीधे राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। उधर कमलनाथ, गहलोत ने किसानों के कर्ज माफ कर दिए ये बात अलग है की कइयों 13, 15, 20 रुपए ही माफ कर पाए तो लाखों का 1 रुपए भी नहीं माफ हुआ और इस सदमें में किसान खुदकुशी भी किया।
कुलमिलाकर 2019 चुनाव के लिए पूरा विपक्ष पूरे दम खम के साथ एक साथ लड़ने का आह्वान कर चुका है भले ही उनके पास नेता कोई न हो। खैर कुछ बड़े समाचार संस्थानों ने जनवरी में ही देश के मूड को परखने का प्रयास किया और परिणाम में बताया की मोदी जी अबकी पूर्ण बहुमत से दूर रहने वाले हैं और विपक्ष एकजुट होकर सरकार बना सकती है। जबकि स्थिति अभी बदलनी बाकी है, विपक्ष के बाद सत्ता पक्ष भी अपनी चुनावी पारी शुरू कर चुकी है और तीन राज्यों में हार के बाद उसने दो सबक साफतौर पर सीखे।
Sc/st एक्ट से नाराज उसके परंपरागत समर्थक व किसान। मोदी सरकार ने इन दोनों को ही खुश करने के लिए जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उसका कोई काट विपक्ष के पास नहीं बचा। सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में सवर्णों के लिए 10% आरक्षण लाकर सवर्णों को खुश करने का प्रयास किया और विपक्ष को दिल पर पत्थर रखकर समर्थन देने को मजबूर कर दिया।
इसी बीच संसद में अंतरिम बजट भी पेश किया गया और विपक्ष ने आरोप लगाया की यह तो पूर्ण बजट जैसा है और इससे चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास भी किया गया है।
इसमें कोई दो राय नहीं की चुनाव से पहले आने वाले बजट में चुनावी असर साफ साफ दिखता है तो सरकार यह मानकर भी चलती है की आगे भी उसी की सरकार आने वाली है।
इस बजट में छोटे किसानों को प्रतिवर्ष 6000 देने का प्रवधान किया गया और मध्यमवर्ग को खुश करने के लिए आयकर छूट की सीमा 5 लाख तक कर दी गई। अगर गरीब किसानों की बात करें तो विपक्ष का मानना है की 6हजार मतलब 500 रुपए प्रतिमाह से किसानों का कोई फायदा नहीं होने वाला है और यह जनता को बेवकूफ बनाने का तरीका मात्र है। जमीनी हकीकत में गरीब किसान को कभी कभी सौ-दो सौ रूपयों के लिए दूसरों के सामने हाँथ फैलाना पड़ता है ऐसे में अगर चौथे महीने उसके एकाउंटमें 2 हजार आ जाते हैं तो उसको बहुत मदद मिलेगा। दूसरी योजना यह की 60 साल की उम्र के बाद गरीब मजदूरों को 3 हजार महीने पेंसन देगी जिसके लिए प्रतिवर्ष 100 रुपए खुद से और इतना ही सरकार द्वारा भरा जाएगा। कुलमिलाकर सरकार द्वारा कई प्रमुख प्रयास किए गए और आगे भी कुछ अहम चाल चल सकती है जिससे 2019 में पुनः उनका रास्ता साफ होगा और एकबार फिर पूरे विपक्ष को परास्त किया जाएगा।
बजट पेस करने के बाद पश्चिम बंगाल में मोदी ने बड़े जनसैलाब को संबोधित किया और ममता के साथ साथ पूरे विपक्ष पर जमकर निशाना साधा।
अब देखते हैं नए चुनावी सर्वे किसके पक्ष में होते हैं।
अंकित मिश्र चंचल
उधर बुआ-भतीजा गठबंधन भी चुनावी बिगुल बजा दिया और अखिलेश ने माया को प्रधानमंत्री का सपना दिखाते हुए मुलायम के सपने चूर चूर कर दिया।
सपा-बसपा से भाव न पाने पर कांग्रेस ने इंदिरास्त्र के रूप में प्रियंका वाड्रा को लांच कर दिया क्योंकि उनकी शक्ल उनकी दादी से मिलती है इसलिए उनको सीधे राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। उधर कमलनाथ, गहलोत ने किसानों के कर्ज माफ कर दिए ये बात अलग है की कइयों 13, 15, 20 रुपए ही माफ कर पाए तो लाखों का 1 रुपए भी नहीं माफ हुआ और इस सदमें में किसान खुदकुशी भी किया।
कुलमिलाकर 2019 चुनाव के लिए पूरा विपक्ष पूरे दम खम के साथ एक साथ लड़ने का आह्वान कर चुका है भले ही उनके पास नेता कोई न हो। खैर कुछ बड़े समाचार संस्थानों ने जनवरी में ही देश के मूड को परखने का प्रयास किया और परिणाम में बताया की मोदी जी अबकी पूर्ण बहुमत से दूर रहने वाले हैं और विपक्ष एकजुट होकर सरकार बना सकती है। जबकि स्थिति अभी बदलनी बाकी है, विपक्ष के बाद सत्ता पक्ष भी अपनी चुनावी पारी शुरू कर चुकी है और तीन राज्यों में हार के बाद उसने दो सबक साफतौर पर सीखे।
Sc/st एक्ट से नाराज उसके परंपरागत समर्थक व किसान। मोदी सरकार ने इन दोनों को ही खुश करने के लिए जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उसका कोई काट विपक्ष के पास नहीं बचा। सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों में सवर्णों के लिए 10% आरक्षण लाकर सवर्णों को खुश करने का प्रयास किया और विपक्ष को दिल पर पत्थर रखकर समर्थन देने को मजबूर कर दिया।
इस बजट में छोटे किसानों को प्रतिवर्ष 6000 देने का प्रवधान किया गया और मध्यमवर्ग को खुश करने के लिए आयकर छूट की सीमा 5 लाख तक कर दी गई। अगर गरीब किसानों की बात करें तो विपक्ष का मानना है की 6हजार मतलब 500 रुपए प्रतिमाह से किसानों का कोई फायदा नहीं होने वाला है और यह जनता को बेवकूफ बनाने का तरीका मात्र है। जमीनी हकीकत में गरीब किसान को कभी कभी सौ-दो सौ रूपयों के लिए दूसरों के सामने हाँथ फैलाना पड़ता है ऐसे में अगर चौथे महीने उसके एकाउंटमें 2 हजार आ जाते हैं तो उसको बहुत मदद मिलेगा। दूसरी योजना यह की 60 साल की उम्र के बाद गरीब मजदूरों को 3 हजार महीने पेंसन देगी जिसके लिए प्रतिवर्ष 100 रुपए खुद से और इतना ही सरकार द्वारा भरा जाएगा। कुलमिलाकर सरकार द्वारा कई प्रमुख प्रयास किए गए और आगे भी कुछ अहम चाल चल सकती है जिससे 2019 में पुनः उनका रास्ता साफ होगा और एकबार फिर पूरे विपक्ष को परास्त किया जाएगा।
अब देखते हैं नए चुनावी सर्वे किसके पक्ष में होते हैं।
अंकित मिश्र चंचल
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