ले दादी लड्डू लाया हूँ
आजादी के क्या मायने हैं ये हम स्वतंत्रता दिवस मना के कैसे समझ जाएं। हां ये सच है कि हमें आजाद हुए 72 वर्ष हो गए किन्तु हम कहें कि देश की बहुत बड़ी आवादी अभी गुलाम है तो लोग मूर्ख भी कह सकते हैं। क्या गरीबी किसी गुलामी से कम है?
पढ़िए ये कहानी-
8 साल का राहुल स्वतंत्रता दिवस मतलब सिर्फ यही जानता है कि 15 अगस्त को लड्डू मिलता है। सुबह-सुबह वह जल्दी उठता है। कुछ फूल इकट्ठा करता है क्योंकि मास्टर साहब ने बोला है कि सबको फूल लाना है।
स्कूल में मास्टर जी सभी बच्चों को कतार में बैठाते हैं। बच्चे भी सारे आए हैं क्योंकि आज मिठाई मिलने वाली है। झंडा से प्रेम सबको होता है किन्तु सभी बच्चों के पास इतने पैसे नहीं कि झंडा खरीद सकें। राहुल के पास भी झंडा नहीं था और उसने कुछ देर के लिए अपने दोस्त गोलू का झंडा थामा था।
सारे जहां से अच्छा, ऐ मेरे वतन के लोगों, दे दी हमें आजादी तूने आदि गाने बच्चे बारी-बारी से प्रस्तुत कर रहे हैं। टीचर जी का भाषण भी हो रहा है। पूरा कार्यक्रम हो रहा है लेकिन जो नहीं हो रहा है वो है लड्डू का आना।
कुछ देर में लड्डू के डिब्बे आते दिखते हैं और बच्चों का निगाह उसी पर थम जाता है। अब यह तो तय हो गया कि लड्डू जरूर मिलेगा लेकिन एक नया संदेह हैरान किए जा रहा है- "लड्डू एक मिलेगा या दो"।
टकटकी निगाहें परेशान हैं कि कब मेरा नम्बर आएगा, लड्डू मिलेगा भी या खत्म हो जाएगा।
टकटकी निगाहें परेशान हैं कि कब मेरा नम्बर आएगा, लड्डू मिलेगा भी या खत्म हो जाएगा।
वाह दो लड्डू!
राहुल हाँथ में दो लड्डू पाते ही खाने को सोचता तभी उसे कुछ याद आता है और वह सीधे घर की ओर भागता है।
राहुल हाँथ में दो लड्डू पाते ही खाने को सोचता तभी उसे कुछ याद आता है और वह सीधे घर की ओर भागता है।
प्राइमरी स्कूल के तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले राहुल के सभी दोस्त लड्डू खाए और खुशी-खुशी घर गए। राहुल भी घर पहुंचा लेकिन लड्डू उसके हाँथ में थे।
घर में अपने बूढ़ी दादी को देखते ही उसे कुछ पुरानी बातें याद आती हैं। दादी पिछले साल से ही इंतजार कर रही थी कि कब पड़ोसी के बेटी की शादी पड़ेगी और कुछ अच्छा खाने को मिलेगा।
घर में अपने बूढ़ी दादी को देखते ही उसे कुछ पुरानी बातें याद आती हैं। दादी पिछले साल से ही इंतजार कर रही थी कि कब पड़ोसी के बेटी की शादी पड़ेगी और कुछ अच्छा खाने को मिलेगा।
गर्मी के महीने में शादी हुई, देर रात तक बारात की खातिरदारी में सब व्यस्त रहे। राहुल की मां भी गयी थी। पुरूष तो बाहर खा-पी रहे थे, अब बेचारी औरतों को कौन पूंछता भला।
पड़ोसन चाची ने सभी महिलाओं को खाना खिलाया। जाते समय 2 मिठाई और पूड़ी-सब्जी भी दी। एक तो मजदूर परिवार ऊपर से पड़ोसन चाची की कंजूसी, 2 मिठाई ही मिल गए बड़ी बात थी।
पड़ोसन चाची ने सभी महिलाओं को खाना खिलाया। जाते समय 2 मिठाई और पूड़ी-सब्जी भी दी। एक तो मजदूर परिवार ऊपर से पड़ोसन चाची की कंजूसी, 2 मिठाई ही मिल गए बड़ी बात थी।
राहुल याद करता है कि घर पहुंचते ही एक मिठाई वह और एक उसकी मां ने खा लिया।
दादी अभी जग रही थी और उसने खांसते हुए पूंछा, "क्या लाए हो राहुल"।
राहुल की मां ने पूड़ी और सब्जी देते हुए कहा कि मां जी यही मिला है। पड़ोसन बड़ी कंजूस है, और कुछ न दिया। दादी धीमी आवाज में बोली, "राहुल कोई मिठाई नहीं मिला क्या"?
आठ साल का राहुल बहुत पछताया कि काश वह मिठाई आधी ही दादी को दिया होता। राहुल ने दादी से कहा कि दादी मैं जाकर चाची से मांगता हूँ शायद दे दे। दादी बोली कोई बात नहीं नाती जब बड़े हो जाना तो खरीद के मिठाई लाना।
दादी अभी जग रही थी और उसने खांसते हुए पूंछा, "क्या लाए हो राहुल"।
राहुल की मां ने पूड़ी और सब्जी देते हुए कहा कि मां जी यही मिला है। पड़ोसन बड़ी कंजूस है, और कुछ न दिया। दादी धीमी आवाज में बोली, "राहुल कोई मिठाई नहीं मिला क्या"?
आठ साल का राहुल बहुत पछताया कि काश वह मिठाई आधी ही दादी को दिया होता। राहुल ने दादी से कहा कि दादी मैं जाकर चाची से मांगता हूँ शायद दे दे। दादी बोली कोई बात नहीं नाती जब बड़े हो जाना तो खरीद के मिठाई लाना।
यही सोचते हुए राहुल अपनी दादी के पास पहुंचा तभी दादी ने दुलारते हुए पूंछा, "क्या रे राहुल! आज तो तू लड्डू खाकर आया होगा। झंडा फहराया? आ गोदी में, थक गया होगा मेरे नाती।
राहुल ने धीरे से अपने दोनों हाँथ आगे किया और बोला- "ले दादी लड्डू लाया हूँ"
दादी के आंखों में आंसू आ गए और उसने राहुल को सीने से लगा लिया।
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