हाउडी इंडिया: कुपोषण, भुखमरी और मोदी मोदी

अमेरिका में ट्रम्प के साथ मंच साझा कर रहे थे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

कार्यक्रम था "हाउडी मोदी"

अमेरिका में रह रहे भारतीयों को संबोधित करते हुए मोदी जी बोले- भारत में सबकुछ अच्छा है!

तालियां, शानदार कवरेज और चारों तरफ मोदी- मोदी।

इन तालियों के और मोदी के नारों के बीच रोटी के टुकड़ों के लिए तरस रहे भारत के एक तबके को कौन याद करे?

भुखमरी से लाचार वह तबका जो न तो सोशल मीडिया चलाता है न ही मीडिया उसे कवरेज देना चाहती है।



दरअसल मीडिया को भी शोर-शराबे ही पसंद है और वही सब दर्शकों को दिखाना चाहती है जो वो पसंद करते हैं।

इनका ऑडिएंस भी तो वही है जिनके पास tv है, बिजली है, भोजन है और मकान है।

तो फिर गरीबी, भुखमरी से मर रहे उस तबके के बारे में सोचना ही क्यों!

वर्ड बैंक ने अपने जारी किए एक बयान में कहा कि भारत अब विकासशील देशों की श्रेणी से भी नीचे जा चुका है।
यानी भिखारी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि की श्रेणी में पहुंच गया है।

आज के समाचार में एक नया रिपोर्ट आया है जिसमें भारत गरीबी, भुखमरी, कुपोषण के मामले में बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, चीन आदि सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा है।



आयरिश एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन संगठन वेल्ट हंगर हिल्‍फे  द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट ने भारत में भुखमरी के स्तर को गंभीर करार दिया।

इनके द्वारा तैयार किए गए रिपोर्ट "ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019" में भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर रखा गया है।

2000 में आए इसी रिपोर्ट में भारत का स्थान 83वें नम्बर पर था जो कि अन्य देशों की अपेक्षा 102 पर जा पहुंचा।

इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6 से 23 महीने के बीच के सभी बच्चों में से केवल 9.6 फीसद को ही सही आहार मिल पाता है।


यह रिपोर्ट भूंख के आधार पर तैयार किया जाता है जिसमें भारत का स्कोर 100 में 30.3 यानी भूख का गंभीर संकट है।

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत ने मृत्यु दर, कम वजन और अल्पपोषण जैसे संकेतकों में सुधार दिखाया है।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए शौचालयों से खुले में शौच से एक हद तक मुक्ति मिली है। लेकिन अभी भी बहुत संख्या में लोग खुले में शौच कर रहे हैं जो कि बीमारी का एक कारण है।

राजनैतिक शोर शराबे के बीच इन गरीबों के लिए कोई वृहद अभियान चले, भुखमरी के खिलाफ आंदोलन खड़ा हो यह आज के भारत की मांग है।

pc: google

वास्तव में अगर आप गांव के माध्यम वर्गीय परिवार से भी हों तो अपने देखा होगा कि पौष्टिकता के नाम पर बीमार को ही फल उपलब्ध हो पाता है।

गरीबों की बात करें तो देश में अनगिनत लावारिस बच्चे, बूढ़े, मानसिक रूप से विचलित लोग जीव-जंतुओं की तरह पड़े हैं जिनको कोई पूंछने वाला नहीं है।

सरकार और मीडिया का दायित्व है कि सर्वप्रथम देश में सभी गरीबों का आकड़ा बनाए, उनको आवास, बच्चों को शिक्षा व क्षमता अनुसार रोजगार उपलब्ध कराए।

क्योंकि देश कितना भी विकास कर ले, यदि समाज का एक हिस्सा रोटी के लिए तरसता होगा तो वह विकास सिर्फ छलावा होगा।

जिस प्रकार हमारे शरीर के किसी अंग के क्षतिग्रस्त होने पर शरीर की सुंदरता कम हो जाती है उसी प्रकार हमारे समाज का एक तबका लाचार, पीड़ित हो तो देश को कभी विकसित नहीं कहा जा सकता।

~अंकित मिश्र






Comments

  1. कितना पैसे लिए हो पत्रकार जी कांग्रेस से यह फेक आंकड़े का हवा बनाने के लिए

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