घर निकलते ही कुछ दूर चलते ही.....

समय की गति को रोका नहीं जा सकता हाँ कुछ लोग इसके साथ जरूर चलने का प्रयास करते हैं हमने भी किया, आपने भी किया होगा। अगर आप अपने घर, मां-बाप, प्रेमिका को छोड़कर किसी दूर शहर में रहते हैं तो आपने उस पल को बखूबी महसूस किया होगा।

वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ, मैं था पागल जो उसको बुलाता रहा, चार पैसे कमाने मैं आया शहर, गांव मेरा मुझे याद आता रहा....

एक मां जिसका नाम अनायास ही कोई भी कष्ट होने पर निकल आता है। एक बाप जिसके साथ होने पर दुनिया में किसी से डर नहीं लगता था। एक भाई, एक बहन, एक दादा, दादी, ......परिवार ।

लेकिन इनसब में एक अनोखा चेहरा है जो हमेशा आपके जाने पर रोता है भले ही अब आप बड़े हो गए हो और उससे आपकी कम बनती हो।
क्योंकि उसके जिंदगी का सारा सपना आप हो, क्योंकि उसका दिल बहुत मजबूत होते हुए भी आपके लिए कमजोर है, क्योंकि उसने रात की नींद, दिन का चैन खोकर आपको पाला है।
उसने अपने खून से सींच के हमको तैयार किया। आज भी हमारे घर पहुंचते ही हमको देखकर उसका उदास, और बूढ़ा होता चेहरा खूबसूरत हो जाता है, हमको देखकर उसकी मुस्कान दुनिया की सबसे खूबसूरत मुस्कान होती है।
जबतक वह खुद न खिलाए उसे लगता है मैं कुछ खाता ही नहीं। वो अक्सर यही कहा करती है कमजोर हो गए हो सेहत का ध्यान दो। उसे लगता है की 4 दिन में ही कितना खिला दूं की बेटा मोटा हो जाए, अगर आप मोटे हो तो वो नहीं चाहती की कोई आपको नजर लगाए।
        क्योंकि वो मुझसे भी बहुत ज्यादा मेरी चिंता करती है, क्योंकि वो मां है घर छोड़ते समय उसका उदास चेहरा ऐसा लगता है की अब वो जाने ही नहीं देगी लेकिन उसका दिल हमारे लिए कमजोर होते हुए भी मजबूत है।

वो मेरे बिना रह सकती है किन्तु वह मेरे तरक्की से भी उतना ही प्रेम करती है जितना की मुझसे। मेरे सारे सुख को वो अपना मानती है। भले ही उससे दूर रहूं लेकिन बहुत बड़ा आदमी बनूं इसी भरोसे के साथ फिर समय बिताने लगती है।

घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही इस बेटे को भी बहुत आती है मां की याद।

अंकित मिश्र चंचल

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