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पत्रकारिता में असीमित कैरियर, धैर्य व लगन की जरूरत

सोशल मीडिया या आधुनिक मीडिया के इस युग में यदि आप सामाजिक, राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने विचार रखना चाहते हैं, आप में ललक है कुछ लिखने-पढ़ने व प्रसिद्धी की तो पत्रकारिता आप के लिए एक बहुत ही बेहतर मंच है. एक जमाना था जब पत्रकारिता में सम्मान तो था किन्तु आमदनी के नाम पर या आजीविका के लिए कुछ खास नहीं मिल पाता था. लेकिन न्यू मीडिया के इस युग में पत्रकारिता में प्रसिद्धी के साथ-साथ अच्छी कमाई भी की जा सकती है. लेकिन सबकुछ निर्भर करता है आपके मेहनत और लगन पर. तो आइए जानते हैं पत्रकारिता के बारे में कुछ अहम बातें.... अच्छी नौकरी की सम्भावनाएं आपको बता दें कि पत्रकारिता में यदि आपने किसी अच्छे संस्थान से ग्रेजुएशन, मास्टर्स या डिप्लोमा जैसी कोई डिग्री ली है तो आपके लिए नौकरी की पर्याप्त सम्भावनाएं हैं. बसर्ते आपमें उस क्षेत्र में प्रतिभा व मेहनत करने की लगन हो. यानी कि यदि आप अच्छा लिखते हेैं तो आप किसी प्रिन्ट मीडिया यानी अखबार, मैगजीन या आनलाइन समाचार वेब पोर्टल में नौकरी पा सकते हैं. यदि आप अच्छे वक्ता हैं और अपके आवाज में दम है तो समाचार चैनल में आपको बतौर एंकर या रिपोर्टर काम मिल सकता है....

पुस्तक समीक्षा: "गोरा" -भारतीयता की खोज का अपूर्व आख्यान

ठाकुर रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित उपन्यास "गोरा" की गहराई को समझने के बाद उसे महाकाव्य की संज्ञा देना अतिसंयोक्ति न होगा। यह काव्य भारत के उस काल का आईना है जब भारत पराधीनता के साथ-साथ धार्मिक युद्ध में भी लिप्त था। अंग्रेजी हुकूमत ने ईसाई मिशनरियों को धर्मपरिवर्तन के लिए खुली छूट दी थी। वहीं हिन्दू समाज में जातिगत भेदभाव, रूढ़ियों, छुआछूत से आहत लोगों ने तेजी के साथ ईसाइयत को स्वीकार करना शुरू किया। यह वही कालखंड था जब राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज पूरी तरह ईसाइयत की ओर आकर्षित हो गया था। गोरा पुस्तक में गोरा, विनय, सुचरिता, परेश बाबू और हारान बाबू प्रमुख पात्र हैं। गोरा एक हिन्दू और प्रबल राष्ट्रवादी विचारक है। जिसके जीवन का एक मात्र उद्देय हिन्दू समाज व भारत मां की सेवा करना है। वहीं हारान ब्रह्म समाज का विचारक है जो हिंदू धर्म का प्रबल विरोधी है। हारान अंग्रेजी हुकूमत व ईसाइयत को देश के लिए अत्यंत आवश्यक समझता है। परेश बाबू भी ब्रह्म समाज के उपासक हैं जिनकी बेटियों से गहरी दोस्ती के कारण गोरा के मित्र विनय पर तमाम सामाजिक लांछन लगते हैं। इस काव्य ...

हाउडी इंडिया: कुपोषण, भुखमरी और मोदी मोदी

अमेरिका में ट्रम्प के साथ मंच साझा कर रहे थे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। कार्यक्रम था "हाउडी मोदी" अमेरिका में रह रहे भारतीयों को संबोधित करते हुए मोदी जी बोले- भारत में सबकुछ अच्छा है! तालियां, शानदार कवरेज और चारों तरफ मोदी- मोदी। इन तालियों के और मोदी के नारों के बीच रोटी के टुकड़ों के लिए तरस रहे भारत के एक तबके को कौन याद करे? भुखमरी से लाचार वह तबका जो न तो सोशल मीडिया चलाता है न ही मीडिया उसे कवरेज देना चाहती है। दरअसल मीडिया को भी शोर-शराबे ही पसंद है और वही सब दर्शकों को दिखाना चाहती है जो वो पसंद करते हैं। इनका ऑडिएंस भी तो वही है जिनके पास tv है, बिजली है, भोजन है और मकान है। तो फिर गरीबी, भुखमरी से मर रहे उस तबके के बारे में सोचना ही क्यों! वर्ड बैंक ने अपने जारी किए एक बयान में कहा कि भारत अब विकासशील देशों की श्रेणी से भी नीचे जा चुका है। यानी भिखारी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि की श्रेणी में पहुंच गया है। आज के समाचार में एक नया रिपोर्ट आया है जिसमें भारत गरीबी, भुखमरी, कुपोषण के मामले में बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, ची...

मोदी जी हमें पानी दे दो

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साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च "जल जीवन मिशन" के लिए खर्च किया जाएगा। -मोदी आपको बता दें हरियाणा, राजस्थान समेत ऐसे कई राज्य हैं जाहां पीने का साफ पानी नहीं है। पिछले दिनों हम हरियाणा के भिवानी जिले में गए थे। वहां के कई गांवों में लोगों से मुलाकात किया। भोजन, आवास और अन्य सभी रोजमर्रा के साधनों से संम्पन्न ये बेचारे पीने के पानी बिना अधूरे थे। कुछ गांव में माताओं के सर पर पानी से भरे बर्तन देखा तो कष्ट हुआ।  कुछ गांव में इससे भी ज्यादा दयनीय स्थिति देखने को मिला। लोग बताए कि यहां का पानी बहुत खारा है। उन्होंने कहा कि इस पानी से नहाने तक कि इच्छा नहीं होती। नल और कुंआ सूखे हैं। जिनमें पानी है भी तो वो पीने के योग्य नहीं है। एक गांव में लोगों ने बताया कि यहां सप्लाई का पानी महीने में तीन बार आता है। उसी को गांव वासी स्टोर करके पूरे महीने पीते हैं। इस जल संकट को देखकर कोई भी आदमी यह समझ सकता है कि व्यर्थ पानी बर्बाद करना कितना बड़ा पाप है। यहां के लोगों का सरकार से गुहार है कि उनको सिर्फ पीने के लिए पानी उपलब्ध करा दिया जाए तो वो सरकार को बहुत सफल माने...

ले दादी लड्डू लाया हूँ

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आजादी के क्या मायने हैं ये हम स्वतंत्रता दिवस मना के कैसे समझ जाएं। हां ये सच है कि हमें आजाद हुए 72 वर्ष हो गए किन्तु हम कहें कि देश की बहुत बड़ी आवादी अभी गुलाम है तो लोग मूर्ख भी कह सकते हैं। क्या गरीबी किसी गुलामी से कम है? पढ़िए ये कहानी- 8 साल का राहुल स्वतंत्रता दिवस मतलब सिर्फ यही जानता है कि 15 अगस्त को लड्डू मिलता है। सुबह-सुबह वह जल्दी उठता है। कुछ फूल इकट्ठा करता है क्योंकि मास्टर साहब ने बोला है कि सबको फूल लाना है। स्कूल में मास्टर जी सभी बच्चों को कतार में बैठाते हैं। बच्चे भी सारे आए हैं क्योंकि आज मिठाई मिलने वाली है। झंडा से प्रेम सबको होता है किन्तु सभी बच्चों के पास इतने पैसे नहीं कि झंडा खरीद सकें। राहुल के पास भी झंडा नहीं था और उसने कुछ देर के लिए अपने दोस्त गोलू का झंडा थामा था। सारे जहां से अच्छा, ऐ मेरे वतन के लोगों, दे दी हमें आजादी तूने आदि गाने बच्चे बारी-बारी से प्रस्तुत कर रहे हैं। टीचर जी का भाषण भी हो रहा है। पूरा कार्यक्रम हो रहा है लेकिन जो नहीं हो रहा है वो है लड्डू का आना। कुछ देर में लड्डू के डिब्बे आते दिखते हैं और बच्चों का निगाह ...

अंतरिम बजट, चुनावी शतरंज, छोटी-छोटी मगर मोटी बातें

लोकसभा चुनाव आ गया है, राजनीति जोड़-तोड़ शुरू हो चुके हैं, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रमुख छोड़ महागठबंधन के अन्य सभी नेताओं ने ममता बनर्जी के नेतृत्वमें मंच भी साझा किया। केजरीवाल भी पूरे जोश में मोदी पर बरसे और बाद में तो उन्होंने ट्वीट कर मोदी भक्तों को देश से प्यार न करने वाला भी साबित करने का प्रयास किया। उधर बुआ-भतीजा गठबंधन भी चुनावी बिगुल बजा दिया और अखिलेश ने माया को प्रधानमंत्री का सपना दिखाते हुए मुलायम के सपने चूर चूर कर दिया।  सपा-बसपा से भाव न पाने पर कांग्रेस ने इंदिरास्त्र के रूप में प्रियंका वाड्रा को लांच कर दिया क्योंकि उनकी शक्ल उनकी दादी से मिलती है इसलिए उनको सीधे राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। उधर कमलनाथ, गहलोत ने किसानों के कर्ज माफ कर दिए ये बात अलग है की कइयों 13, 15, 20 रुपए ही माफ कर पाए तो लाखों का 1 रुपए भी नहीं माफ हुआ और इस सदमें में किसान खुदकुशी भी किया।  कुलमिलाकर 2019 चुनाव के लिए पूरा विपक्ष पूरे दम खम के साथ एक साथ लड़ने का आह्वान कर चुका है भले ही उनके पास नेता कोई न हो। खैर कुछ बड़े समाचार संस्थानों ने जनवरी में ही देश के मूड को परखने का...

देशभक्ति सिर्फ व्हाट्सएप, fb स्टेटस, 15 अगस्त और 26 जनवरी पर ही क्यों

जनवरी में हम देश का 70वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे। इसी दिन ही 1950 में हमारे देश को अपना संविधान मिला। एक ऐसा संविधान जो हमारे जीने के लिए सभी उपयोगी पहलुओं को ध्यान में रखकर बनाया गया। एक ऐसा संविधान जिसके अनुसार यह देश चले तो इस देश में सबका कल्याण होगा, सबका विकास होगा और यह देश परम् वैभव को प्राप्त करेगा। एक ऐसा संविधान जिसे पाने, बनाने के लिए आतताई अंग्रजों से बड़ी लड़ाई लड़ी गयी, लाखों लोग शहीद हुए, जिनमें से बहुत कम को ही हम जानते हैं और याद करते हैं। देश के लिए कुर्बान होने वाले उन भारत रत्नों ने 1947 में देश को आजाद कराया और देश को आजादी दिलाने वाले व आम जनमानस के प्रतिनिधि देश के भाग्यविधाताओं ने 1950 में देश को एक खूबसूरत संविधान दिया। एक ऐसा संविधान जिसमें पूरे राष्ट्र कल्याण की कल्पना की गई है और अनेक ऐसे कानून हैं जिनके प्रभाव में देश एक अनुशासन में फल-फूल सकेगा। 15 अगस्त और 26 जनवरी इस देश के लिए महापर्व हैं और पूरा देश बड़े धूम धाम से इस त्यौहार को मनाता है और उन महापुरुषों को याद करता है जिन्होंने एक मजबूत भारत का निर्माण किया।  बच्चों के हाँथों में तिरंगा, सी...