धर्मनिरपेक्ष बापू ने भी चखा मुश्लिम कट्टरता का स्वाद,मौलाना मोहम्मदअली ने दिया जख्म

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के माहनायक तिलक के बाद गाँधी के युग का पदार्पण हुआ और वास्तव में गाँधी ने पूरे देश में अद्भुत समर्थन प्राप्त किया ।देश का बड़े से बड़ा नेता गाँधी जी के नेतृत्व को स्वीकारा मतभेद भले ही रहे हों। अली बंधुओं -मौलाना शौकत अली और मुहम्मदअली का कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं था और वे ख़िलाफ़त जैसी एक दिवालिया और बदनाम संस्था से थे तथा जेल से छूटकर 1919 में सीधे कांग्रेस अधिवेशन में आए थे। मुश्लिमों के निवेदन के चलते गांधी जी ने बिना शर्त के दोनों का कांग्रेस में स्वागत किया जिबकी कई ऐसे नेता थे जो चाहते थे की मुसलमान नेता कम से कम इसके बदले मुसलमानों द्वारा होने वाली गौहत्या को बंद करा दें।गांधी जी ने कहा कि इसके लिए किसी शर्त की आवश्यकता नहीं अगर मुसलमानों का दिल पिघला और वो खुद गौ हत्या बन्द किए तो सबसे बेहतर होगा ।यहां तक कि कुछ नेताओं ने ये भी कहा कि ब्रिटिश नेताओं के इशारे पर मुश्लिम नेताओं ने जो अलग निर्वाचन की मांग की थी उसको वो छोड़ दे किन्तु गाँधी जी मुश्लिमों से कोई सौदा नहीं करना चाहते थे और यही जहर हो गया ।न केवल लाल लाजपतराय ,स्वामी श्रद्धानंद ,पं मालवीय बल्कि युवा जवाहरलाल नेहरू का भी ख्याल था की अली बंधु "हिंदुओं को केवल मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं"| किन्तु गाँधी जी का कहना था ;विश्वास न करने की बजाए ,मैं हज़ार बार धोखा खाना बेहतर समझता हूँ। उसके बाद 2 साल तक अली बंधुओं ने कांग्रेस और गाँधी जी की खूब भक्ती दिखाई और पूरे देश में जाकर अनेक सभाओं को संबोधित किया। 1923 में मौलाना मोहम्मद अली कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनें तथा अपने अध्यक्षीय भाषण में गाँधी जी की तुलना ईसामसीह से की और भी की ओजस्वी बातें की ।उस समय गाँधी जी यरवदा जेल में थे और एक ही महीने में उनका स्वास्थ्य पूरी तरह खराब हो गया था और उनको अस्पताल भर्ती किया गया ।अस्पताल में भी अली बंधुओं ने गांधी जी से अपनी अपार प्रेम को दिखाया,गाँधी जी के पैर चूमे यहाँ तक की मोहम्मद अली रोए भी और जल्दीस्वस्थ होने की कामना की। 1924 में कांग्रेस अहमदाबाद में बैठक हुई और गाँधी जी ने कहा की इन दो सालों में कांग्रेस में बहुत गिरावट आयी और वो इतना दुखी थे कि शाम को 'यंग इंडिया' में यह तक कह दिया की मेरी तेज़ रफ़्तार में जो बाधा बना वह था शौकत अली.." किन्तु मौलानामुहम्मद अली गाँधी जी के चरणों में पुनः गिर गया ,दरसल वो उनकी नजरों में अभी भी साफ था। गांधी जी पुनः अपने दौरे शुरू किए और उस समय देश में कई जगह मुश्लिम हिन्दू दंगे हो रहे थे । गाँधी जी बहुत प्रयास किए लोगों को समझाए किन्तु अलग अलग स्थानों पर दंगे होते रहें ।उस वक्त गाँधी मोहम्मदअली के घर ही रुके थे और अचानक दुःखी होकर उन्होंने घोषणा कर दी कि हिन्दू -मुस्लिम सौहार्द के लिए वो 21 दिन उपवास करेंगे ।उनके इसबात का मोहम्मदअली ने विरोध किया और खाने के लिए बहुत मनाया लेकिन गाँधी उल्टा उनको जी समझाते।धीरे धीरे कई महीने बीतते गए और कई मंचों से भाषणों के समय गांधी जी ने कहा कि अली बन्धु आजकल अपने कामों में मसरूफ हैं उनके लिए दोनों के पास समय नहीं है । वहीं दूसरी ओर जो मौलाना अली गांधी जी का पैर चूमते थे,कदमों पर गिर जाते थे,आंसू बहाया करते थे उन्होंने यह घोषणा की कि- गांधी का अखलाक चाहे कितना भी पाक क्यों न हो ,किन्तु वह मुझे मज़हब के नज़रिए से किसी मुसलमान से कमतर दिखाई देंगे चाहे फिर वह मुसलमान बेअखलाक भी क्यों न हो। उसके बाद कई जगह मौलाना ने कहा कि "मैं एक बदकार और गिरे हुए मुसलमान को भी गांधी से बेहतर मानता हूँ।"
     अंकित मिश्र चंचल

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