Sc/st act एक गंभीर विषय
देश की आजादी के बाद नीति निर्माताओं ने संविधान बनाते समय आने वाले भारत की स्थिति के बारे में गहन चिंतन,मनन के बाद अनेक नियमों कानूनों से संविधान को परिपूर्ण किया ।जिसके माध्यम से यह कल्पना की गयी की देश के हर तबके को अपना सर्वांगीण विकाश करने का अवसर मिलेगा।कोई अछूता न होगा,कोई नीच न होगा ,कोई स्त्री किसी किसी पुरुष द्वारा सताई न जाएगी ,कोई गरीब बिना खाये नहीं मरेगा,बच्चा बच्चा विद्यालय जाएगा देश का हर स्तर पर विकाश होगा और सबको बराबर न्याय मिलेगा ,कुलमिलाकर एक मजबूत /स्वस्थ/खुशहाल भारत का निर्माण होगा ।इसी संविधान में देश के हर नागरिक को बराबर का हक दिया गया और दबे, कुचले,पिछड़े लोगों के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान किया गया जिससे ये भी विकास की मुख्य धारा में आ सकें क्योंकि पूरा देश अपना समाज है और देश में कोई भी दुःखी रहेगा तो हमको दुःख होना चाहिए ।
संविधान बना सारे नियम कानून लागू किये गए किन्तु यह भारतीय लोकतंत्र/कानून की असफलता ही माना जाएगा कि 1955 के 'प्रोटेक्शन आफ सिविल राइट्स एक्ट' के बावजूद सालों तक दलितों पर होने वाले अत्याचार और अश्पृश्यता खत्म न हुई अतः ये देखते हुए 1989 में sc/st अत्याचार रोकथाम अधिनियम बनाया गया जिसे जम्बू कश्मीर छोड़ पूरे देश में लागू किया गया।इसके तहत इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके,तथा इनके ऊपर हुए अत्याचार की सुनवाई के लिए पीड़ित /गवाह के आने जाने का खर्च सरकार उठाएगी,थाने पर तुरंत FIR लिखा जाएगा,और तेजी के साथ कार्यवाही की जाएगी ।प्रोसिक्यूशन की प्रक्रिया शुरू करने और उसकी निगरानी करने के लिए अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे और इन उपायों पर अमल के लिए राज्य सरकार जैसा उचित समझेगी, उस स्तर पर कमेटियां बनाई जाएंगी।प्रावधानों की बीच-बीच में समीक्षा की जाए, ताकि उनका सही तरीके से इस्तेमाल हो सके।किन्तु दिक्कत तो तब आने लगी जब सच में लोग इस प्रावधान का दुरुपयोग करने लगे ।और धीरे धीरे समय बदल वर्तमान समय तक स्थिति यह आ चुकी कि आज हर क्षेत्र में चाहे प्रशासनिक हो या राजनीतिक या वकील या पत्रकार ,दलितों को पर्याप्त नेतृत्व हर जगह प्राप्त हो चुका है और इनकी संख्या भी पूरे देश की एक चौथाई हो चुकी है तो जाहिर सी बात है कि अपनी पुरानी स्थिति से काफी मजबूत हो चुके हैं और लड़ाई ,झगड़े में भी किसी से कमजोर नहीं यहां तक कि कइयों की स्थिति सवर्णों से भी काफी अच्छी है तो ऐसी स्थिति में sc/st कानून उनको इसका दुरुपयोग करने की हिम्मत बढ़ाता है और खुद गलती होने के बावजूद बेकसूरों को ही उल्टा sc/act में फसाया जा रहा और सबसे ज्यादा दिक्कत तो उस क्षेत्र में है जो दलित बाहुल्य हैं या जहाँ विधायक/दरोगा/मजिस्ट्रेट आदि दलित ही हैं ।यहाँ अनेकों गैर दलित sc/st एक्ट को झेल रहे हैं ,भले ही बाद में वो निर्दोष सावित हों किन्तु sc/st के चलते उन गैर दलितों का पूरा जीवन बेकार हो जाता है कोर्ट,थाने के चक्कर में और पुलिस विभाग को भी खर्चा/पानी की व्यवस्था कर रहे हैं।
इन्ही सब समस्याओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. इसके अलावा जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी जांच के बाद एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी ।बेगुनाह लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। कोर्ट के इस आदेश और नई गाइडलाइंस के बाद से इस समुदाय के लोगों का कहना है कि ऐसा होने के बाद उन पर अत्याचार बढ़ जाएगा।जबकि सच यह है की इसका दुरुपयोग हद से ज्यादा हो रहा था और इनके मुकदमों की वजह से अगर किसी निर्दोष को सजा होती है तो यह कहां तक जायज है आखिर अपने अधिकारों के लिए दूसरों के अधिकारों का हनन करना कहां तक जायज है।
दूसरी बात यह है आज पूरे देश में एक चौथाई जनसंख्या SC /ST है और कुछ प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार ,मध्य प्रदेश ,तमिलनाडु आदि की जनसंख्या तो लगभग आधे आध है जिसमें SC /ST में भी कई तरह की जातियां आती हैं और उनकी शिक्षा का स्तर भी पहले की तुलना में काफी बढ़ चुका है ,कानून और उसके दांव पेंच उनको मालूम हो चुका है ,इन सब चीजों का भी फायदा उठाते हैं और किसी व्यक्ति के ऊपर fir कर सकते हैं दूसरी बात यह है कि आज के समय में देश के हर विभाग में चाहे वह प्रशासनिक हो या राजनीतिक हर जगह उनको प्रतिनिधित्व मिला है और कई जगह आरक्षण भी हर जगह लोग हैं और कुछ ऐसी दूसरी जातियां भी हैं जो अपने निजी फायदे के लिए उनके द्वारा अपने किसी दुश्मन पर एससी एसटी एक्ट लगवा कर इस कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं प्रदेश में कितनी जनसंख्या होने के बावजूद उनको किसी भी जातियों से कमजोर नहीं आंका जा सकता क्योंकि जहां तक मेरा अनुमान है मैंने देखा भी है कि जहां पर उनकी संख्या अधिक है वहां ऐसे ही कोई दूसरा उनके साथ अत्याचार या जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता है उसके बावजूद देश के ग्राम प्रधान से लेकर लोकसभा के चुनाव तक में उनकी सीटें आरक्षित हैं और हर जगह इनको प्रतिनिधित्व मिल रहा है निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है की आजादी के इन 70 सालों में देश की स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है और SC ST जैसे गानों की आवश्यकता नहीं है अगर यह कानून रहेगा तो इसका दुरुपयोग स्वाभाविक है और वैसे भी देश के संविधान ने देश के में सबको न्याय का हक दिया है कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर हुए अत्याचार का विरोध स्थानीय अदालत में जाकर कर सकता है और दोषी को सजा का प्रावधान है अथवा सरकार का कर्तव्य है कि न्यायपालिका का सम्मान करें और SC /ST जैसे कानून पारित करवाने की कोई आवश्यकता नहीं है।हालांकि यह कानून राजनीति से पूर्णतया प्रभावित है ,आज देश में हर राजनैतिक पार्टियों के नजर में sc/st एक बहुत बड़ा वोट बैंक है और सभी पार्टियां इन समुदाय को खुश करने के लिए प्रयास करती रहती हैं ,आखिर न्यायपालिका भी क्या करे इन राजनेताओं के आगे खुद को लाचार महसूस कर रही है । औए देश की आम जनता भी मजबूर है इन नेताओं के आगे क्योंकि किसी न किसी को तो वोट करना ही है ,चुनावी समय में कुकुरमुत्ते मुत्ते की तरह आते है,साथ तमाम योजनाओं से भरा भाषण होता है और जीतने के 5 साल मुँह नहीं दिखाएंगे ।आप आवाज उठाओ तो लाठी चार्ज ।किसी तरह से आवाज सुनने के लिए तैयार भी हुए तो तगड़ी वोट बैंक वाले का । आखिर जनता फिर जाएगी न्यायालय ,फिर एक कोर्ट में न्यायाधीश और वकील साहब होंगे और बहुत चिंतन मनन के बाद ,कई बार कोर्ट लगने के बाद 4-5 साल बीतते बीतते एक न्याय आएगा ,जिसमें जज साहब कहेंगे की sc/st जैसे कानून की अब कोई जरूरत नहीं क्योंकि इसका दुरुपयोग हो रहा और फिर एक बार सड़कों पर भीम सेना,हाँथी वाले और अन्य कई राजनीतिक जादूगर st/st समाज पर जादू चलाएंगे और फिर केंद्र सरकार अपने हार की डर से संसद में विधेयक लाएगी जो की पूर्ण बहुमत से दोनों सदनों में पास होकर महामहिम राष्ट्रपति के पास जाएगी और उनके हस्ताक्षर के बाद पुनः अपने पुराने रूप में कानून बन जाएगी और एकबार फिर यह कानून लम्बे समय के लिए हो जाएगी ।यही हाल जातिगत आरछण का भी होगा ,भले ही संघ या अन्य सामाजिक चिंतक कहें कि आरछण पर विचार होना चाहिए किन्तु राजनेता भी आजीवन आरछण की अवधि बढ़ाने की पैरवी करता नजर आएगा ।दरसल लोकतंत्र यही है यहाँ कुछ भी बदलना उतना आसान नहीं। आज भी किसी बड़े मेला में हजारों भिखारी नजर आएंगे जिनको आरछण का मतलब भी नहीं पता ,जिनको एक वक्त की रोटी भी रोज नसीब नहीं होती ,जितने बच्चों को वजीफा,आरक्षण तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि विरासत में उनको भी भिखारी वाला काम ही मिला ।आजदी के सत्तर सालों बाद भी जिस देश,समाज को आरछण ,sc/st कानून /पिछड़ा आयोग आदि अनेक सुविधाओं की जरूरत पड़े तो मतलब साफ है की इस लम्बे समय में देश में वो विकाश नहीं हुआ जिसकी अपेक्षा थी बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से जनता का पर्याप्त शोषण हुआ है।
अंकित मिश्र चंचल
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